अरणी का पेड़ (Clerodendrum phlomidis)

 अरणी

अरणी का पौधा राजस्थान सहित  समस्त उत्तरी भारत में मुख्य रूप से पाया जाता है| राजस्थान के शुष्क मरुस्थलीय परिवेश में यह मुख्य रूप से पनपता है | इसका क्षुप बहुवर्षीय और झाड़ीनुमा होता है जो लगभग 7 से 8 फुट ऊँचाई तक बढ़ता है|


नामकरण

हिन्‍दी               -  
अग्तिमंद, गाणिकारिका, तकीर्ण
संस्‍कृत             -  
अरनी, अगेधु गनियार
स्‍थानीय नाम    - अरणा,  
अरणी 
वैज्ञानिक नाम   -   
Clerodendrum phlomidis


                                   गुणधर्म

  • अरनी की दो जातियां होती हैं। छोटी और बड़ी। बड़ी अरनी के पत्ते नोकदार और छोटी अरनी के पत्तों से छोटे होते हैं। छोटी अरनी के पत्तों में सुगंध आती हैं। लोग इसकी चटनी और सब्जी भी बनाते हैं। श्वासरोगवाले को अरनी की सब्जी अवश्य ही खाना चाहिए।

  • यह तीखा, गर्म, मधुर, कड़वा, फीका और पाचनशक्तिवर्द्धक  होता है तथा वायु,जुकाम, कफ, सूजन, बवासीर, आमवात, मलावरोध, अपच, पीलिया, विषदोष और आंवयुक्त दस्त आदि रोगों में लाभकारी है।

  •                      औषधीय उपयोग
  • बड़ी अरनी के पत्तों को पीसकर इसकी पट्टी सूजन पर बांधना चाहिए। इससे सूजन ठीक हो जाती है।
  • अरनी की जड का 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम दोनों समय पीने से पेट का दर्द, जलोदर और सभी प्रकार की सूजन मिट जाती है।
  • अरनी की जड़ और पुनर्नवा की जड़ दोनों को एक साथ पीसकर गर्म कर लेप करने से शरीर की ढीली पड़ी हुई सूजन उतर जाती है।

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