पीलू या जाळ का पेड़ (salvadora olcoides)
जाल या पीलू का पेड़ भारत में बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, सिंध आदि शुष्क प्रदेशों में पाया जाता है। राजस्थान का थार मरुस्थल, जहाँ पर सुदूर रेतीले धोरों में वनस्पति बहुत कम मात्रा में पायी जाती हैं वहां पर भी जाल का पेड़ खूब फलता-फूलता है | यह रेगिस्तानी और मैदानी भागों से लेकर 500 मीटर की ऊँचाई वाले इलाकों तक भी पाया जाता है। जाळ का वृक्ष घना और छायादार होता है, और लगभग 4 से 5 मीटर ऊंचाई तक बढ़ जाता है | इसकी टहनियां पोली और कमजोर होती हैं |
जाल का व्यस्क पेड़जाल के पत्तों और फल के आकार के अनुसार ये दो प्रकार के होते है, जिन्हें खारी जाल और मीठी जाल के नाम से जाना जाता हैं
खारी जाल के पत्ते लगभग एक इंच लम्बे और आधा इंच चौड़े होते हैं, और फल छोटे और गहरे चमकदार रंग के होते है, वहीँ मीठी जाल के पत्ते एक से डेढ़ इंच लम्बे और 5 से 10 मिमी चौड़े होते हैं और फल खारी जाल के फल की अपेक्षाकृत थोड़े बड़े और भूरे मटमैले और हलके पीले रंग के होते हैं |
मीठी जाल के पत्ते और फल
खारी जाल के पत्ते और फल
जाल के फलों को पीलू कहा जाता है | भीषण गर्मी के मौसम में जब थार के तपते धोरे लू के थपेड़ो से आम जन को त्रस्त कर रहे होते है, तब उस भीषण गर्मी में जाल के ये स्वादिष्ट फल शीतलता प्रदान करते हैं |जाल के ये पीलू अंगूर की तरह रसभरे होते है, जिनके गुदा के बीच में एक बीज होता हैं | इनके फलों या पीलू के सुखा कर भी स्टोर किया जाता है, जो बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं |
रसभरे पीलू जाल का विभिन्न भाषाई नाम |
- Hindi – पीलू, छोटा पीलू, खरजाल
- English – मेसवाक (Meswak), साल्ट बुश ट्री (Salt bush tree), मस्टर्ड ट्री (Mustard tree), Tooth brush tree (टूथ ब्रश ट्री)
- Sanskrit – पीलू , पीलू, गुडफल्, स्रीं, शीतफल, गौली, शीत, सहस्राक्षी, शीतसह, श्याम, करभवल्लभ, पीलूक
- Oriya – कोटुङ्गो (Kotungo), टोबोटो (Toboto)
- Urdu – पीलू (Pilu)
- Kannada – गोनी मारा (Goni mara), गोनी (Goni)
- Gujarati – पीलू (Pilu), खरि जाल (Khari jal)
- Tamil – पेरुन्गोलि (Perungoli), कलावी (Kalavi)
- Telugu – गोगु (Gogu), गुनिया (Gunia)
- Bengali – पीलूगाछ (Pilugach), पीलू (Pilu)
- Nepali – पिलु (Pilu)
- Punjabi – पीलू (Pilu), झाल (Jhal)
- Marathi – पीलू (Pilu), खाकिन (Khakin)
- Malayalam – उका (Uka)
- Arabic – अराक (Arak), मिसवाक (Miswaq)
- Persian – दरख्ते मिसवाक (Darkhate miswak)
- निशोथ, पीलू, अजवायन, कांजी आदि अम्ल द्रव्य तथा चित्रकादि पाचन द्रव्यों को मिलाकर सेवन करें। इससे पेट दर्द और आंतों के रोग में लाभ होता है।
- पीलू के पेस्ट से पकाए हुए घी का सेवन करने से पेट के फूलने की समस्या में लाभ (peelu ke fayde) होता है।
- भुने हुए पीलू फल (pilu fruit) को सेंधा नमक के साथ खाएं और साथ में गोमूत्र, दूध या अंगूर का रस पीने से पेट की बीमारी जैसे – पैट की गैस की समस्या (Meswak tree benefits) ठीक होती है।
- रोज सुबह 7 दिन से एक माह तक पीलू को अकेले या छाछ के साथ सेवन करें। इससे बवासीर, पेट की गैस, पाचन विकार, गुदा विकार आदि में लाभ (peelu ke fayde) मिलता है।
- सहिजन बीज, जड़ी बीज, कनेर पत्ते, पीलू वृक्ष की जड़, बेलगिरी तथा हींग को थूहर के दूध के साथ पीस लें। इसे बवासीर के मस्सों पर लेप करने से लाभ होता है।
- पीलू के तेल में बत्ती भिगोकर गुदा में रखने से बवासीर में लाभ होता है।
कुछ और उपयोगी पौधे देखें -
1.खेजड़ी या शमी का वृक्ष (PROSOPIS CINERARIA)
2.कुम्मट या कुंभट ( ACEASIA SENEGAL)
4.छोटी दूधी (EUPHORBIA MACROPHYLLAE)
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