वर्षा सूचक पेड़ - अमलतास
अमलतास का पेड़ लगभग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है| राजस्थान के सुदूर थार रेगिस्तान में इसके पौधे प्राकृतिक तौर पर तो कम ही उगते हुए देखा जाता है, किन्तु इसके पौधे को नर्सरी से लाकर लगाये जाएँ तो इस रेगिस्तानी वातावरण में भी आसानी से लग जाते है | अमलतास के पेड़ पहाड़ी क्षेत्र और सड़कों के किनारे आपको हर कहीं आसानी से दिख जायेंगे | इसके तने की परिधि तीन से पाँच कदम तक होती है, किंतु वृक्ष बहुत उँचे नहीं होते। गर्मी के मौसम में पूरा पेड़ पिले फुलों के लंबे लंबे गुच्छोंसे भर जाता है। तब यह पेड़ बहुत ही मनमोहक लगता हैं |
ऐसा माना जाता है कि फूल खिलने के बाद ४५ दिन में बारिश होती हैं। इस कारण इसे गोल्डन शॉवर ट्री, और इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री भी कहा जाता हैं। शीतकाल में इसमें लगनेवाली, हाथ सवा हाथ लंबी, बेलनाकार काले रंग की फलियाँ पकती हैं। इन फलियों के अंदर कई कक्ष होते हैं जिनमें काला, लसदार, पदार्थ भरा रहता है। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। फलियों से मधुर, गंधयुक्त, पीले कलझवें रंग का उड़नशील तेल मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि फूल खिलने के बाद ४५ दिन में बारिश होती हैं। इस कारण इसे गोल्डन शॉवर ट्री, और इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री भी कहा जाता हैं। शीतकाल में इसमें लगनेवाली, हाथ सवा हाथ लंबी, बेलनाकार काले रंग की फलियाँ पकती हैं। इन फलियों के अंदर कई कक्ष होते हैं जिनमें काला, लसदार, पदार्थ भरा रहता है। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। फलियों से मधुर, गंधयुक्त, पीले कलझवें रंग का उड़नशील तेल मिलता है।
विभिन्न भाषाओँ में नामकरण -
हिंदी – अमलतास, सोनहाली, सियरलाठी
संस्कृत – आरग्वध, राजवृक्ष, शम्पाक, चतुरङ्गुल, आरेवत, व्याधिघात, कृतमाल, सुवर्णक, कर्णिकार, परिव्याध, द्रुमोत्पल, दीर्घफल, स्वर्णाङ्ग, स्वर्णफल
उर्दू – अमलतास (Amaltas)
उड़िया – सुनारी (Sunari)
आसामी – सोनारू (Sonaru)
कन्नड़ – कक्केमरा (Kakkemara)
गुजराती – गर्मालो (Garmalo)
तमिल – कोन्डरो (Kondro), कावानी (Kavani), सरकोन्नै (Sarakonnai), कोरैकाय (Karaikaya)
तेलुगु – आरग्वधामु (Aragvadhamu), सम्पकमु (Sampakamu
बंगाली – सोनाली (Sonali), सोनूलु (Sonulu), बन्दरलाठी (Bandarlati), अमुलतास (Amultas)Nepali – अमलतास (Amaltas)
पंजाबी – अमलतास (Amaltas), करङ्गल (Karangal), कनियार (Kaniar)
मराठी – बाहवा (Bahawa)Malayalam – कणिकोन्ना (Kanikkonna)
अरबी – खियार-शन्बर (Khiyar-shanbar)Persian – ख्यार-शन्बर (Khyar-shanbar)
English – कैसिया (Cassia), गोल्डन शॉवर (Golden shower), इण्डियन लेबरनम (Indian laburnum), परजिंग स्टिक (Purging stick), पॅरजिंग कैसिया (Purging cassia)
वानस्पतिक नाम - कैसिया फिस्टुला (Cassia fistula L., Syn-Cassia rhombifolia Roxb., Cassia excelsa Kunth.) है।
औषधीय गुणधर्म
अमलतास के पेड़ का सम्पूर्ण भाग का औषधीय उपयोग है -
आयुर्वेद में इस वृक्ष के सब भाग औषधि के काम में आते हैं। कहा गया है, इसके पत्ते मल को ढीला और कफ को दूर करते हैं। फूल कफ और पित्त को नष्ट करते हैं। फली और उसमें का गूदा पित्तनिवारक, कफनाशक, विरेचक तथा वातनाशक हैं फली के गूदे का आमाशय के ऊपर मृदु प्रभाव ही होता है, इसलिए दुर्बल मनुष्यों तथा गर्भवती स्त्रियों को भी विरेचक औषधि के रूप में यह दिया जा सकता है। अफारा ,मुंह में पानी आना आदि लक्षणों में भी इसका उपयोग किया जाता है |
बुखार में अमलतास के फायदे
अमलतास फल मज्जा (amaltas ki phali), पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा के साथ बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसका काढ़ा बनाकर पिएं। इससे बुखार उतर जाता है।
फुंसी और छाले की परेशानी में अमलतास के फायदे
अमलतास के पेड़ (amaltas ka ped) से पत्ते लें। इसे गाय के दूध के साथ पीस लें। इसका लेप करने से नवजात शिशु के शरीर पर होने वाली फुंसी या छाले दूर हो जाते हैं।
खांसी के इलाज के लिए अमलतास का सेवन
- अमलतास ट्री की 5-10 ग्राम गिरी को पानी में घोटें। उसमें तीन गुना चीनी का बूरा डाल लें। इसे गाढ़ी चाशनी बनाकर चटाने से सूखी खांसी ठीक होती है।
- अमलतास फल मज्जा को पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा के साथ बराबर भाग में मिलाएं। इसका काढ़ा बनाकर पिएं। इससे कफ में लाभ (Amaltas ke fayde) होता है।
- अमलतास के फल के गूदा का काढ़ा बना लें। इसमें 5-10 ग्राम इमली का गूदा मिलाकर सुबह और शाम पिएं। यदि रोगी में कफ की अधिकता हो तो इसमें थोड़ा निशोथ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से विशेष लाभ होता है।
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