खेजड़ी या शमी का वृक्ष (Prosopis cineraria)

 राजस्थान के तपते रेत के धोरों में लू के जबरदस्त थपेडों के बीच भी सीना तान कर खड़ा रहने की क्षमता रखने वाला सदाबहार पेड़ खेजड़ी को राजस्थान की धरोहर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। राजस्थान का थार मरूस्थल जहां कई हिस्सों में वार्षिक वर्षा का औसत 100 मि.मी. से भी कम रहता हैं, ऐसे स्थानों पर भी खेजड़ी का वृक्ष आसानी से जीवित रहता हैं।

खेजड़ी का वृक्ष प्रायः सम्पूर्ण राजस्थान के साथ गुजरात, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक के शुष्क भागों में भी पाया जाता हैं, तथापि रेगिस्तानी क्षैत्रों मे यह पेड़ प्रचुरता से पाया जाता हैं। यह बहुवर्षीय सदाबहार वृक्ष होता हैं जिसकी उंचाई लगभग 3 से 5 मीटर तक होती हैं। भीषण गर्मी और अति कम पानी की उपलब्धता में भी अपने आपको जीवित रखने के अनुकूलन के कारण इसको राजस्थान का कल्पवृक्ष भी कहा जाता हैं। 

खेजड़ी का व्यस्क पेड़ 


विभिन्न भाषाओं में नामकरण

हिन्दी - खेजड़ी, शमी

अंग्रेजी - प्रोसोपिस सिनेरेरिया

वानस्पातिक नाम - Prosopis cineraria (प्रोसोपीस कीनेरार्या)

पंजाबी - जंड

तमिल - वण्णि

गुजराती - शमी, सुमरी


वैज्ञानिक वर्गीकरण

जगत: पादप

विभाग: माग्नोल्योप्सीदा

वर्ग: माग्नाल्योफीता

गण: फाबालेस

कुल: फाबाकेऐ

वंष: प्रोसोपीस

जाति: P. cineraria


राजस्थानी जनजीवन में खेजड़ी का बहुत महत्व हैं। ग्रीष्मकाल में जब यहां का तापमान 50 डिग्री सेन्टीग्रेड को पार कर जाता हैं, तब यहां के पशु पक्षियों के लिए एकमात्र खेजड़ी का वृक्ष ही होता है, जहां पर इन्हें ठण्डी छांव मिल पाती हैं। खेजड़ी की पत्तियों को पशुओं के चारे के लिए उत्तम माना जाता हैं इसे स्थानीय भाषा में लूंग या लूंक कहा जाता हैं। मार्च में पेड़ पर फूल आने शुरू होते हैं जिसे मींझर या मीमझर कहा जाता हैं। अप्रेल - मई में फल लगते हैं जो फली के रूप में होते हैं, और इन्हें  सांगरी कहा जाता हैं। 



स्थानीय लोग कच्ची फलियों या सांगरी को तोड़कर उबाल कर सुखा देते हैं और यह सूखी हुई सांगरी काफी महंगी कीमत पर बाजार में बेची जाती हैं। सूखी सांगरी का उपयोग राजस्थान की प्रसिद्ध डिश (सब्जी) पंचकुटा बनाने में प्रयोग की जाती हैं। पंचकुटा सब्जी को देश-विदेश  के 5 स्टार होटलों और शादी विवाह जैसे बड़े समारोहों में स्पेशल सब्जी  के रूप में बनाया जाता हैं। पंचकुटा सब्जी कैर, सांगरी और कुमटिया से बनायी जाती हैं और ये तीनों राजस्थान के थार मरूस्थल की प्राकृतिक वनस्पति हैं। खेजड़ी की लकड़ी काफी मजबूत होती हैं, और पुराने जमाने में लोग इसकी लकड़ी से हल और बैलगाड़ियां बनाने में करते थे।

खेजड़ी की इतनी उपयोगिता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने वर्ष 1983 मे खेजड़ी को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित कर रखा हैं।

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