गोखरू या गोक्षुर (Tribulus terrestris)

 गोखरू या गोखरू का पौधा भूमि की सतह पर फैलने वाला एक प्रसारण सेल पादप है जो भारत के उत्तर पश्चिमी इलाके खासकर राजस्थान हरियाणा पंजाब और गुजरात जैसे इलाकों में पथरीली और बंजर भूमि पर वर्षा ऋतु में एक खरपतवार के रूप में मुख्य रूप से उगने वाली वनस्पति हैं। इसका जो पूरी तरह से धरती पर पसरा हुआ होता है पत्ते चने के पौधे के पत्तों के आकार के आठ से 10 या कभी-कभी से ज्यादा की पंक्ति में लगे हुए होते हैं। इसका फल 3 से 5 का टोन युक्त होता होता है जिसका आकार लगभग चने के जितना बड़ा होता है और यह फल सूखने पर इसके कांटे सख्त और कड़े हो जाते हैं। इसके फूल छोटे-छोटे और पीले रंग के होते हैं। इस पौधे के बीज औषधीय उपयोग में आते हैं जो कि बाजार में गोखरू के नाम से आसानी से किसी भी पंसारी की दुकान पर मिल जाते हैं और यह बीज दशमूल औषधि के प्रमुख भागों में से एक होता है।

नामकरण :-

हिन्दी - गोखरू

संस्कृत - गोक्षुरक, गोकण्टक, गोक्षुरक, त्रिकण्ट, स्वादुकण्टक, वन शृङ्गाट, पलङकषा, श्वदंष्ट्रा, इक्षुगन्धिका, चणद्रुम;

मारवाड़ी:- कांटी, गोखरू कांटी, बोबिया कांटी

वैज्ञानिक नाम :- Tribulus Terrestris



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परिचय :-

गोखरू ज़ाइगोफाइलिई (Zygophylleae) कुल के अंतर्गत ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus terrestris) नामक एक प्रसर वनस्पति है, जो भारत में बलुई या पथरीली जमीन में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इसे छोटा गोखरू या गुड़खुल (हिंदी) और गोक्षुर (संस्कृत) भी कहते हैं। इसके संयुक्त पत्र में 5-7 जोड़े चने के समान पत्रक, पत्रकोणों में एकाकी पीले पुष्प और काँटेदार गाल फल होते हैं।




औषधीय उपयोग:-

     गोखरू शरीर में ताकत देने वाला, नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वाला, शीतल, मधुर, पुष्टिकारक, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श, ब्रणनाशक, स्नेहक, मूत्रविरेचनीय, बाजीकर, मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, प्रमेह, नपुंसकत्व, सुजाक, वस्तिशोथ तथा वातरोगों में लाभदायक माना जाता है। यह मूत्रावरोध, ब्लैडर व गुर्दे की पथरी का नाश करता है। वीर्य की वृद्धि करने वाला, वल्य रसायन, भूख को तेज करने वाला होता है, कमजोर पुरुषों व महिलाओं के लिए एक टॉनिक भी है। प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। गर्भाशय को शुद्ध करता है तथा वन्ध्यत्व को मिटाता है। यह प्रजनन अंगों के लिए एक प्रकार की शोधक, बलवर्धक औषधि है। आयुर्वेद के ‘दशमूल’ नामक दस वनौषधियों के प्रसिद्ध गण में एक यह भी है और इसके मूल का (क्वाथ में) अथवा फल का (चूर्ण) चिकित्सा में उपयोग होता है। इसका सेवन आप दवा के रूप में या सब्जी के रूप में भी कर सकते हैं। गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म, खून की वृद्धि और शरीर के दोषों को दूर करती है। गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं।



प्रमेह शुक्रमेह में :-

बड़ी गोखरू का फांट या घोल सुबह और शाम सेवन करें।

देशी गोखरू 150 ग्राम पीसकर छान लें। इसे 5- 5 ग्राम सुबह – शाम शहद में मिलाकर खायें।

गोखरू का चूर्ण और तिल बराबर मिलाकर बकरी के दूध में पकाकर शहद में मिला लें और खायें।

बड़ा गोखरू और काले तिल, इन दोनों को 15 ग्राम की मात्रा में कूट – पीस लें। फिर इस को 1 गाय के दूध में पकाकर खायें।

बड़ी गोखरू के फल का चूर्ण 5 ग्राम को चीनी और घी के साथ सेवन करें तथा ऊपर से मिस्री मिले दूध का सेवन करने में लाभ होता है।

15 ग्राम बड़ी गोखरू के फल का चूर्ण, 250 मिली लीटर पानी में डालकर उबले थोड़ा – थोड़ा बार – बार पिलाने से कामोत्तेजना बढ़ती है।

सफेद मूसली 20 ग्राम, ताल मखाने के बीज 200 ग्राम और गोखरू 200 ग्राम। तीनों को पीसकर चूर्ण बनाकर 5 ग्राम चूर्ण दिन में दो बार दूध के साथ खायें।

गोखरू, कौंच के बीज, सफेद मूसली, सफेद सेमर की कोमल जड़, आंवला, गिलोय का सत और मिस्री, बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 10 ग्राम तक चूर्ण दूध के साथ खाने से लाभ होता है।

गोखरू, तालमखाना, शतावर, कौंच के बीजों की गिरी, बड़ी खिरेंटी तथा गंगरेन इन सबको 100 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें। इस चूर्ण को 6 ग्राम से 10 ग्राम तक की मात्रा में रात के समय फांककर ऊपर से गरम दूध पियें।



पथरी रोग में :-


मूत्र मार्ग से बड़ी से बड़ी पथरी को तोड़कर निकाल बाहर करता है।

इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, दिन में 2 या 3 बार प्रयोग करे।

फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम प्रयोग करे।

गोखरू 10 ग्राम, 2-3 ग्राम यवक्षार पानी 200 ग्राम में उबाल कर दिन में दो-तीन बार पिलाने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

अजवायन के 10 पत्तों और पथरचटा के 10 पत्ते पीसकर लगुदी बना लें। और इसमें एक चम्मच गोखरू को मिलाकर सुबह-सुबह खाली पेट लगातार सेवन करते रहें।

प्रदर, रक्त स्राव, जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में :-


गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ सुबह शाम प्रयोग करे।

नित्य घी व मिश्री के साथ 10-15 ग्राम गोक्षुर चूर्ण सुबह शाम प्रयोग करे।

सुजाक रोग (गनोरिया) में :- गोक्षुर को पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं।


मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों में :- (Gokhru in Dysuria)


गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार प्रयोग करे।

गोखरू 10 ग्राम, 2-3 ग्राम यवक्षार पानी 200 ग्राम में उबाल कर दिन में दो-तीन बार पिलाने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।

गोखरू चूर्ण एक चम्मच में 2-3 नग काली मिर्च और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह, दोपहर और शाम प्रयोग करे मूत्रकृच्छ्र में आराम मिलता है।

गोखरू 10 ग्राम, पानी 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं।


सिरदर्द में:- (Headache in Hindi)


आजकल सिर दर्द की बीमारी का शिकार ज्यादा से ज्यादा लोग होने लगे हैं।

गोखरू काढ़ा 10-15 मिली को सुबह-शाम प्रयोग करे। जो सिर दर्द पित्त के बढ़ जाने के कारण होता है उससे आराम मिलता है।

पाचन शक्ति में :- (Digestion in Hindi) गोखरू के 25-30 मिली काढ़ा में 5 ग्राम पीपल के चूर्ण का मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पीने से पाचन-शक्ति बढ़ती है।

दस्त रोकने में :- (Diarrhoea in Hindi) गोक्षुरफल चूर्ण (गोखरू चूर्ण ) एक चम्मच को मट्ठे के साथ दिन में दो बार खिलाने से लाभ होता है।


चर्मरोग में :- (Skin Disease in Hindi) गोखरू को पानी में पीसकर त्वचा में लेप करने से दाद, खुजली, आदि त्वचा संबंधी रोगों में लाभ होता है।


सावधानी :

अगर आप किसी बीमारी के इलाज के लिए गोखरू का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों, प्लीहा और गुर्दों के लिए हानिकारक हो सकता है।


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