धमासा (Fagonia cretica)

उत्तरी - पश्चिमी भारत के शुष्क और कठोर भूभागों में पाई जाने वाली तीक्ष्ण कांटो वाली एक अत्यंत छोटी कद काठी वाली बहुपयोगी आयुर्वेदिक वनस्पति है धमासा

यह राजस्थान के थार मरुस्थल में वर्षा कालीन ऋतु बीत जाने पर फसलों को काटने के बाद खेतों में पनपती है।


प्राचीन आयुर्वेदीय संहिताओं तथा निघण्टुओं में दुरालभा, समुद्रान्ता तथा दुस्पर्शा आदि नामों से इसका वर्णन प्राप्त होता है, चरक-संहिता के तृष्णानिग्रहण तथा अर्शोंघ्न गणों में इसका वर्णन किया गया है, प्रत्येक पत्ते के पास दो नुकीले काँटे निकले हुए होते हैं, इसके कांटे शरीर पर चुभने से बहुत ज्यादा दर्द होता है, इस लेख में आगे हम आपको धमासा के फायदे, नुकसान और औषधीय गुणों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं |  


अन्य भाषाओं में धमासा के नाम 

धमासा का वानास्पतिक नाम फैगोनिआ


क्रेटिका है, इसका कुल जाइगोफिलेसी है और इसको अंग्रेजी में खुरासन थॉर्न कहते हैंं।

विभिन्न भाषाओं में नामकरण

Sanskrit - धन्वयास, दुरालभा, उष्ट्रभक्ष्या, समुद्रान्ता, दुस्पर्शा, कच्छुरा, अजभक्ष्य, गान्धारी अनन्ता 

Hindi - धमासा, हिंगुआ, धमहर, उर्स्तुगर, उर्स्तखर, हींगुना 

Urdu - बदरह, बडावरद  

Gujrati - धमासो  

Tamil - तुल्नागरी  

Telugu - चीट्टीगरा, गीरेगटी  

Bengali - दुरालभा  

Punjabi - धमाह, धमान्ह, धामा 

Marathi - धमासा, धूमसा 

Persian - बादा बर्द, बडावर्द  

Arbi - शुकाई, शौकुबेइतीजा।

धमासा का औषधीय गुण 

प्रकृति से धमासा मधुर, कड़वा, कषाय, शीतल, लघु, कफवात से आराम दिलाने वाले, रक्त को शुद्ध करने वाला तथा अर्शोघ्न होता है।

यह विषमज्वर, मलेरिया, तृष्णा या प्यास, छर्दि या उल्टी, प्रमेह या डायबिटीज, मोह, विसर्प या हर्पिज, शूल या दर्द, गुल्म, श्वास, कास, भम, मद तथा कुष्ठ नाशक होता है।

धमासा के फायदे और उपयोग 

धमासा में पौष्टिकारक गुण होता है, उतना ही औषधी के रूप में कौन-कौन से बीमारियों के लिए फायदेमंद होते है, चलिये इसके बारे में आगे जानते हैं :-



धमासा सिरदर्द से आराम दिलाता है 

तनाव से परेशान रहने के कारण सिर के दर्द से परेशान रहते हैं, तो धमासा के पत्तों को पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द से आराम मिलता है।


धमासा मुँह की बीमारियों के इलाज में फायदेमंद है 

धमासा पञ्चाङ्ग का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुखपाक, गले के दर्द तथा अन्य मुँह संबंधी समस्याओं में लाभ होता है, इसके अलावा धमासा पञ्चाङ्ग को पीसकर गले में लगाने से गले की सूजन से आराम मिलता है।



धमासा खाँसी की परेशानी में मददगार है 

देवदारु, शटी, रास्ना, कर्कट शृंगी तथा धमासा के समान भाग में चूर्ण 1 से 2 ग्राम में मधु तथा तिल तेल मिलाकर सेवन करने से वातदोषयुक्त कफज कास से आराम मिलता है।


धमासा फुफ्फुस रोग या लंग्स के बीमारी में फायदेमंद है 

धमासा के रस को गन्ने के रस के साथ उबालकर, उसका अवलेह बनाकर सेवन करने से फुफ्फुस रोगों में लाभ होता है।


धमासा हिक्के के कष्ट से आराम दिलाता है 

अगर आप अक्सर हिक्के के कष्ट से परेशान रहते हैं, तो 10 से 30 मिली धमासा काढ़े में शहद मिलाकर पिलाने से हिक्का से आराम मिलता है।


धमासा कफज सर्दी के कष्ट से राहत दिलाता है 

1 से 2 ग्राम धमासा चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करने से कफज सर्दी में लाभ होता है, इससे बलगम के कारण जो उल्टी होने लगती है उससे आराम मिलता है।


धमासा ग्रहणी या आंतों के रोग के इलाज में फायदेमंद है 

दुरालभा चूर्ण का सेवन करने से ग्रहणी, खून की कमी, कुष्ठ, प्रमेह या डायबिटीज, रक्तपित्त, कान, नाक के खून बहने की बीमारी तथा कफज संबंधी बीमारी से आराम मिलने तथा स्वर एवं वर्ण की वृद्धि होती है।


धमासा उदावर्त के उपचार में लाभकारी है 

बड़ी आँत के समस्या से परेशान हैं, तो 5 मिली धमासा पत्ते के रस को पीने से उदावर्त या बड़ी आँत के समस्याओं से राहत मिलने में आसानी होती है।


धमासा ज्वरयुक्त अतिसार में फायदेमंद है 

धमासा के साथ समान मात्रा में मुनक्का मिलाकर, काढ़ा बनाकर 10 से 20 मिली काढ़े का सेवन करने से दस्त होने के साथ अगर बुखार हुआ है, उससे जल्दी राहत पाने में आसानी होती है।


धमासा मूत्राघात के इलाज में लाभकारी है

अगर पेशाब करते वक्त आपको परेशानी होती है और वह रूक-रूक कर आती है, तो धमासा का सेवन इसके इलाज में लाभप्रद होता है।


धमासा मूत्रकृच्छ्र के बीमारी में फायदेमंद है

धमासा रस से पकाए हुए दूध में घी मिलाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभ होता है।


धमासा विद्रधि या अल्सर से राहत दिलाता है  

धमासा पञ्चाङ्ग को पीसकर लगाने से विद्रधि, व्रण या घाव, मसूरिका या चेचक तथा गले की गांठों के इलाज में मदद मिलती है। 

धमासा के रस को घाव पर लगाने से घाव में पाक नहीं होता तथा घाव शीघ्र भर जाता है।

धमासे का काढ़ा बनाकर व्रण को धोने से घाव में पूय या पीव नहीं बनती तथा घाव जल्दी भर जाता है।

धमासा पामा या खुजली की परेशानी दूर करता है 

आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा संबंधी समस्या होना आम बात हो गई है, धमासा तने की छाल को पीसकर लगाने से पामा में लाभ होता है।


धमासा कुष्ठ के इलाज में फायदेमंद है 

कुष्ठ के लक्षण ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है, तो धमासा पत्ते को पीसकर लगाने से रोमकूप के सूजन तथा श्वेत कुष्ठ के इलाज में लाभकारी होता है।


धमासा भ्रम के उपचार में लाभकारी है 

10 से 20 मिली धमासा काढ़े में 5 मिली घी मिलाकर सेवन करने से भ्रम के इलाज में मदद मिलती है।


धमासा रक्तपित्त में फायदेमंद है 

समान मात्रा में धमासा, पर्पट, कमल-नाल तथा चन्दन से बने 1 से 2 ग्राम पेस्ट का सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।


धमासा बुखार के इलाज में फायदेमंद है 

मौसम के बदलाव के कारण बार-बार बुखार हो जाता है, तो धमासा का इस्तेमाल इस तरह से करने पर जल्दी आराम मिलता है | 

धमासा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10 से 30 मिली मात्रा में पीने से बुखार तथा पित्तज संबंधी समस्याओं से आराम मिलता है।

धमासा से बने काढ़े में जल मिलाकर स्नान करने से बुखार से आराम मिलता है।

गिलोय, सोंठ, नीम छाल, अडूसा पञ्चाङ्ग, कुटकी, हरड़, पोहकर मूल, भृंगराज तथा धमासा का समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें, 10 से 20 मिली काढ़े में शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार के बुखार से आराम मिलता है।

धमासा सूजन कम करने में सहायक है 

सूजन के कष्ट को दूर करने के लिए धमासा को दूध में पकाकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से सूजन से आराम मिलता है।

धमासा सांप काटने पर उसके विष के प्रभाव को कम करने में सहायक है 

धमासा पञ्चाङ्ग के पेस्ट को सांप के काटे हुए जगह पर लगाने से सांप के विषाक्त प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है।

धमासा का उपयोगी भाग 

आयुर्वेद के अनुसार धमासा का औषधीय गुण इसके इन भागों को प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मिलता है :-


पत्ता

पञ्चाङ्ग 

जड़।

धमासा का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए ?

यदि आप किसी ख़ास बीमारी के घरेलू इलाज के लिए धमासा का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो बेहतर होगा कि किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही इसका उपयोग करें, चिकित्सक के सलाह के अनुसार 1 से 2 ग्राम चूर्ण, 5 से 10 मिली रस और 10 से 12 मिली काढ़ा ले सकते हैं।


धमासा कहां पाया या उगाया जाता है ?

कठोर तना तथा कण्टकों से युक्त यह झाड़ी भारत के रूखे भागों में मुख्यत उत्तर-पश्चिमी भारत, पंजाब, गंगा के ऊपरी मैदानी भागों, मध्यप्रदेश, राजस्थान, कोंकण एवं पश्चिमी प्रायद्वीप में पाया जाता है।


इन्हें भी देखें-

1.पुनर्नवा

2.इन्द्रायण

3.खींप

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