पुनर्नवा (Boerhavia diffusa)

 पुनर्नवा (आयुर्वेद का एक अनमोल तोहफा)

 पुनर्नवा आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण औषधीय पादप हैं। वर्षा ऋतु में खेत खलिहानो की मेड़ और खाली मैदानों में एक खरपतवार के रूप में यह पौधा हर कहीं मिल जाता हैं। इसका पौधा बहुत कुछ बेल की भांति भूमि पर पसरा हुआ होता हैं, और तन्तुओं की लम्बाई लगभग दो से तीन मीटर तक बढ जाती हैं। पुनर्नवा का पौधा वर्षा होने पर खेतों में दिखाई देते हैं और ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं, लेकिन अगले साल जैसे ही बरसात होती हैं, इनके सूखे हुए पौधों में जान आ जाती हैं और ये फिर से हरे भरे हो जाते हैं। एक तरह से पुनर्जीवित हो जाते हैं। पुनर्नवा के इसी गुण के कारण इसको पुनर्नवा कहा जाता हैं।



पहचान

गुणधर्म के आधार पर पुनर्नवा की मुख्यतः दो प्रजातियां पायी जाती हैं। 1. रक्त पुनर्नवा और 2. श्वेत पुनर्नवा

रक्त पुनर्नवा की शाखाएं पतली, लंबी और रक्ताभ गुलाबी रंग की होती हैं। इसके पत्तों का पृष्ठ भाग भी हल्का लाल रंग का होता हैं। पत्ते लगभग 20 से 25 मिलीमीटर लम्बाई के हल्के अण्डाकार और शिराओं के साथ किनारों से थोड़े उपर उठकर मुड़े हुए होते हैं। वहीं श्वेत पुनर्नवा की शाखाओं के डण्ठल रक्त पुनर्नवा के डण्ठल से थोड़े मोटे और गोलाकार होते हैं। इनके पत्ते भी रक्त पुनर्नवा के पत्तों से बड़े और थोड़े मांसल होते हैं। श्वेत पुनर्नवा के पत्तों का पृष्ठ भाग हल्का श्वेताभ और चिकना होता हैं।




 पुनर्नवा के पुष्प छतरी के आकार के और छोटे छोटे होते हैं जो पत्तों के पास से निकलते है और प्राय 5 से 15 पुष्पों का गुच्छा होता है। रक्त पुनर्नवा के पुष्प गुलाबी रंग के होते हैं, जबकि श्वेत पुनर्नवा के पुष्प हल्के सफेद रंग के होते हैं, जिसमें बहुत हल्की सी गुलाबी झांई दिखाई देती हैं। इनके बीज फल के हल्के आवरण से ढके होते हैं और चिपचिपे होते हैं।




आयुर्वेद में श्वेत पुनर्नवा के कई औषधीय उपयोग बताए गए है, जबकि रक्त पुनर्नवा आयुर्वेद के दृष्टिकोण से ज्यादा उपयोगी नहीं होता हैं। अतः आगे के भाग में हम केवल श्वेत पुनर्नवा के गुणधर्मों की ही चर्चा करेंगे।

विभिन्न भाषाओं में पुनर्नवा के नाम

हिन्दी - श्वेत पुनर्नवा, विषखपरा, गदपूरना

संस्कृत - पुनर्नवा

मराठी - घेंटुली

राजस्थानी - सांटी, सांटा, 

गुजराती - साटोडी

बंगाली - श्वेत पुनर्नवा, गदापुण्या

तेलुगु - गाल्जेरू

कन्नड़ - मुच्चुकोनि

तमिल - मुकरत्तेकिरे, शरून्ने

इंग्लिश - स्प्रेडिंग हागवीड

लैटिन - ट्रायेंथिमा पोर्टयूलेकस्ट्रम

वानस्पतिक नाम - Boerhaavia diffusa



गुणधर्म

श्वेत पुनर्नवा चरपरी, कसैली, अत्यन्त अग्निप्रदीपक और पाण्डु रोग, सूजन, वायु, विष, कफ और उदर रोग नाशक हैं। इसमें पुनर्नवीन नामक एक क्षारीय यौगिक पाया जाता हैं। पुनर्नवा पोटेशियम नाइट्रेट का भी अच्छा स्रोत हैं। पुनर्नवा भारत के हर कोने में कहीं न कहीं मिल जाती हैं। चिकित्सा मेें इसकी जड़ और पंचांग का उपयोग किया जाता हैं। पुनर्नवा की जड़ लगभग 1 फुट तक लम्बी और लगभग अंगुली के आकार की मोटाई वाली और गूदेदार होती हैं, जिसमें काफी तेज गंध आती हैं और स्वाद में तीखी होती है। इसकी ताजी जड़ को मोड़ने पर आसानी से टूट जाती हैं।


औषधीय उपयोग

(नोट :- औषधीय उपयोग से पूर्व किसी योग्य और अनुभवी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।)

  • इस पौधे का उपयोग पेशाब की रूकावट, त्रिदोष प्रकोप और नेत्र रोगों को दूर करने के लिए विशेष रूप से किया जाता हैं।
  • पुनर्नवा की जड़ को गाय के गोबर के रस में घिसकर आंखांे में लगाने से मोतियाबिन्द ठीक हो जाता हैं।
  • पुनर्नवा के साथ काली कुटकी, चिरायता और सांेठ समान मात्रा में लेकर जौकुट करके काढा बनाकर 2 2 चम्मच सुबह शाम पीने से एनिमिया में बहुत लाभ होता हैं।
  • पुनर्नवा की जड़ का महीन पीसा हुआ चूर्ण आधा आधा चम्मच आधा कप पानी में मिला कर पीने से पीलिया रोग में बहुत फायदा होता है।


कुछ अन्य आयुर्वेदिक जड़ीबूटियां

1.छोटी दूधी

2.भूमि आंवला

3.गोखरू

4.नागरमोथा

5.ऊँट कंटारा





 


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