इंद्रायण (Citrullus colocynthis)

 इंद्रायण राजस्थान के थार मरुस्थल में पायी जाने वाली एक मौसमी लता है। यह तरबूज की बेल से मिलती जुलती बेल है। इंद्रायण की बेल मध्य, दक्षिण, तथा पश्चिमोत्तर भारत, अरब, पश्चिम एशिया, अफ्रीका के उच्च भागों तथा भूमध्यसागर के देशों में भी पाई जाती है। फूल नर और मादा दो प्रकार के तथा फल नांरगी के समान दो इंच से तीन इंच तक व्यास के होते हैं। ये फल कच्ची अवस्था में हरे, पश्चात्‌ पीले हो जाते हैं और उन पर बहुत सी श्वेत धारियाँ होती हैं। इसके बीज भूरे, चिकने, चमकदार, लंबे, गोल तथा चिपटे होते हैं। इस बेल का प्रत्येक भाग कड़वा होता है। 


विभिन्न भाषाओं में नाम

हिन्दी -   इंद्रायण  

बँगला -  इंद्रायण 

गुजराती -  इंद्रायण 

संस्कृत - चित्रफल, इंद्रवारुणी

 मराठी - कडु इंद्रावण 

राजस्थानी और मारवाड़ी - गड़तुम्बा,गडूम्बा, तुम्बा

अंग्रेजी - कॉलोसिंथ या 'बिटर ऐपल' 

लैटिन  -  'सिट्रलस कॉलोसिंथस' (Citrullus colocynthis) 



  इंद्रायण का फल सूजन को उतारनेवाला, वायुनाशक तथा       स्नायु संबंधी रोगों में, जैसे लकवा, मिर्गी, अधकपारी, विस्मृति इत्यादि में लाभदायक है। यह तीव्र विरेचक तथा मरोड़ उत्पन्न करने वाला है, इसलिए दुर्बल व्यक्ति को इसे नही देना चाहिए। इसकी मात्रा डेढ़ से ढाई माशे तक की होती है। इसका चूर्ण तीन माशे तक बबूल की गोंद, खुरासानी अजवायन के सत्व इत्यादि के साथ, जो इसकी त्व्रीाता को घटा देते हैं, गोलियों के रूप में दिया जाता हैं। रासायनिक विश्लेषण से इसमें कुछ उपक्षार (ऐल्कलॉड) तथा कॉलोसिंथिन नामक एक ग्लूकोसाइड, जो इस ओषधि का मुख्य तत्त्व है, पाए गए हैं। ब्रिटिश मटेरिया मेडिका के अनुसार इससे ज्वर उतरता है। इसका उपयोग त्व्रीा कोष्ठबद्धता, जलोदर, ऋतुस्राव तथा गर्भस्राव में भी किया जा सकता है।





यह भी देखें -

धमासा - चर्म रोगों की रामबाण औषधि

गोखरू - एक बहुपयोगी वनौषधि

खेजड़ी या शमी का वृक्ष (PROSOPIS CINERARIA)

खींप (लेप्टाडेनिया पाइरोटेकनिका)

अरणी का पेड़


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