नागरमोथा (Cyperus scariosus) एक बहुपयोगी खरपतवार

मोथा या  नागरमोथा  एक बहुवर्षीय सेज़ वर्गीय पौधा है, जो ७५ सें.मी. तक ऊँचा हो जाता है और यह पूरे भारत में खरपतवार के रूप में उगता है। भूमि से ऊपर सीधा, तिकोना, बिना, शाखा वाला तना होता है। नीचे फूला हुआ कंद होता है, जिससे सूत्र द्वारा प्रकंद जुड़े होते हैं, ये गूद्देदार सफेद और बाद में रेशेदार भूरे रंग के तथा अंत में पुराने होने पर लकड़ी की तरह सख्त हो जाते हैं। यह नमी वाले तथा जलीय क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। नागरमोथा पूरे भारत में नमी तथा जलीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके झाड़ीनुमा पौधे समुद्र तल से 6 हजार फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। नागरमोथा नदी और नालों के किनारे की नमी वाली भूमि में पैदा होते हैं। पुष्प (फूल) जुलाई में तथा फल दिसम्बर के महीने में आते हैं। राजस्थान के मैदानी इलाको में धान और अन्य फसलों के साथ खरपतवार के रूप में भी यह पौधा खूब उगता है, वहीं थार मरुस्थल की बात करें तो यहाँ के रेगिस्तानी परिवेश में भी आपको यह पौधा हर कहीं दिखाई दे देगा |


वैज्ञानिक वर्गीकरण 

  • वानस्पतिक नाम: Cyperus scariosus
  • कुल                : हर्ब साइपरेसी (Cyperacea)

  • Sanskrit -नागर मुस्तक
  • Hindi -नागरमोथा
  • Urdu – नागरमोथा (Nagarmotha)
  • Kannada – नागरमुस्थे (Nagarmusthe)
  • Gujarati – नागरमोथया (Nagarmothya)
  • Tamil (Nagarmotha in Tamil) – कोरेइकिलान्गु (Koraikkilangu)
  • English – अम्ब्रेला एज (Umbrella edge), Cypriol (साइप्रीऔल)
  • Telugu – कोलतुंगामुस्ते (Kolatungamuste), तुंगगाड्डालावेरू (Tungagaddalaveru)
  • Bengali – नागरमोथा (Nagarmotha)
  • Marathi – लवाला (Lawala)
  • Malayalam – कोराकीजहान्ना (Korakizhanna)
  • Arabic – साडेकुफी (Sodekufi), सोड (Soad)
  • Persian – मुस्केजमीन (Muskejhameen)
रासायनिक घटक 
इस जड़ी-बूटी के प्रमुख रासायनिक घटक एसेंशियल ऑयल, फ्लेवोनोइड्स, टेरपीनोइड्स, साइपरोल, गोजुजेन, ट्रांस-कैलामेनीन, कैडलीन, साइपरोटंडोन, मस्टैकोन, आइसोसाइपोलोल, आइसोकोनोल आदि हैं। शोध के मुताबिक इस हर्ब में एनाल्जेसिक, डायूरेटिक,कृमिनाशक, एंटी-इंफ्लेमेटरी,एंटी -डाइसेंट्रिक, रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं जो कई रोगों से छुटकारा दिलाने में लाभकारी हैं। नागरमोथा खाने में चरपरा, कड़वा, कषैला और सूखा होता है। स्वरूप : नागरमोथा के झाड़ी नुमा पौधे की लम्बाई 30 से 60 सेमी तक ऊंची होती है। इसके पत्ते लंबे और पतले होते हैं। इसके तने में आधा इंच व्यास के अण्डाकार सुगन्धित बाहर से पीले रंग के परन्तु अन्दर से सफेद रंग के कन्द (फल) होते हैं। नागरमोथा की जड़ में कसेरू की भांति एक कन्द निकलता हैं जिसे नागरमोथा कहते हैं। स्वभाव : नागरमोथा की तासीर शीतल होती है। नागरमोथा के फल में एक सुगन्धित तेल होता है। नागरमोथा में प्रोटीन स्टार्च और अन्य कार्बोहाइड्रेट भी होते हैं। गुण-धर्म : नागरमोथा दीपन (पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला), पाचक (भोजन को पचाने वाला), कफ, पित्त, रक्त-विकार (खून की बीमारी), तृषा (प्यास), ज्वर और कीड़ों को नाश करता है। नागरमोथा का लेप शोथ (सूजन) को कम करने वाला और स्तनों में दूध की वृद्धि करता है। नागरमोथा त्वचा के रोग, बुखार, जहर को कम करने वाला, बलकारक, गर्भाशय संकोचक (गर्भाशय का सुकड़ना) और मूत्रल (पेशाब को बढ़ाने वाला), को कम करता हैं। यह स्मरण शक्तिवर्द्धक और नाड़ियों (नसों) को ताकत देता है। इसके प्रकंदों में खुशबू युक्त तेल पाया जाता हैं जो इतर बनाने के काम आता हैं |

औषधीय उपयोग 

1. मिर्गी: नागरमोथा को उत्तर दिशा की तरफ से पुण्य नक्षत्र में अच्छे दिन में उखाड़कर एक रंग की गाय के दूध से पिलाने से मिर्गी में लाभ पहुंचता है।
2. प्रसूता स्त्री के स्तनों में दूध का कम उतरना:

मोथा (नोगर मोथा) के फल को पानी में पीसकर नारी के स्तनों पर पेस्ट के रूप में लेप करने से प्रसूता स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्वि होती है। नागरमोथा को अच्छी तरह से पीसकर नारी के स्तनों पर लेप करें और नागरमोथा को 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध में पीसकर पिलाने से दूध की शुद्धि और बढ़ोत्तरी होती है, साथ ही साथ बच्चे को जन्म देने वाली मां (प्रसूता स्त्री) के दूध में जमा गांठें कम हो जाती हैं। नागरमोथा को पानी में उबालकर पिलाने से स्त्रियों के स्तनों का दूध शुद्ध होता है और दूध बढ़ता है।

3. क्षय कास (टी.बी. की खांसी): नागरमोथा, पिप्पली (पीपल), मुनक्का तथा बड़ी कटेरी के अच्छे पके फलों को समान भाग में लेकर भली प्रकार पीसकर घी और शहद के साथ चाटने से टी.बी. की खांसी कम होती है।
4. तृषा (प्यास): नागरमोथा, पित्तपापड़ा, उशीर (खस), लाल चंदन, सुगन्धवाला, सौंठ आदि पदार्थों को पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को ठड़े पानी के साथ बीमार व्यक्ति को देने से प्यास और बुखार की प्यास में शान्ति मिलती है।
5. खांसी: अतीस, काकड़ासिंगी, पीपल और नागरमोथा को पीसकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को शहद के साथ चटाने से खांसी के साथ-साथ बच्चों का बुखार कम होता है।
6. अग्निवर्धक (भूख को बढ़ाने वाला) : नागर मोथा की जड़ों को खाना भूख और दिल के लिए लाभकारी होता है।
7. पेट के कीड़े: 

एक चुटकी नागरमोथा का चूर्ण शहद के साथ प्रयोग करना चाहिए। नागरमोथा 2 ग्राम, अजवायन 2 ग्राम, भुना हुआ जीरा 2 ग्राम, कालीमिर्च 2 ग्राम और बायबिण्डग 2 ग्राम लेकर 25 ग्राम सेंधानमक के साथ बारीक पीस लें। इस बने चूर्ण को 4-4 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं और पेट के दर्द में लाभ मिलता है। नागरमोथा की जड़ों का 10-20 ग्राम चूर्ण सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

8. अरुचि ज्वर (बुखार में भोजन की इच्छा न होना): 10 ग्राम नागरमोथा और पित्तपापड़ा दोनों को एक साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को भोजन से 1 घंटे से पहले पीने से बुखार दूर होता है और भूख बढ़ती है।
9. वमन (उल्टी) लाने के लिए: नागरमोथा, इन्द्रजौ, मैनफल तथा मुलेठी को समान भाग में लेकर पीसकर छान लें, और इस चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से उल्टी होती है।
10. दस्त और आंव:

नागरमोथा के 10 ग्राम चूर्ण में 30 ग्राम दूध डालकर पकायें, जब केवल दूध थोड़ा-सा रह जाये तो इस दूध को 200 मिलीलीटर सुबह, दोपहर तथा शाम को सेवन से आंव (एक प्रकार का सफेद तरल पदार्थ जो मल के द्वारा बाहर निकलता हैं) दस्त बन्द हो जाते हैं। नागरमोथा 6 ग्राम, हिंगुल 6 ग्राम, कपूर 6 ग्राम, इन्द्रजौ 6 ग्राम को एक साथ अच्छी तरह पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें, फिर इन्हीं बनी गोलियों को दिन में 3-4 बार सेवन करने से ऑव के दस्त समाप्त हो जाते हैं। नागर मोथा के रस को गर्म करके फिर उसके बाद उसे ठडा होने पर शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से अमीबिक प्रवाहिका रोग में लाभ होता है। अदरक और नागरमोथा को अच्छी तरह पीसकर शहद के साथ चटाने से आमातिसार (ऑवयुक्त दस्त) बन्द हो जाते हैं।

11. अतिसार (दस्त) :

नागरमोथा की जड़ों का चूर्ण बनाकर सेवन करने से प्रवाहिका (पेचिश) तथा दस्त में लाभ पहुंचता है। 10 ग्राम नागरमोथा, 10 ग्राम आंवला, 10 ग्राम अदरक, 30 ग्राम हरड़ और सोंठ 40 ग्राम। इन सबको मिलाकर कूटकर छान लें। इस चूर्ण के सेवन से दस्त, प्लीहा (तिल्ली) जिगर के साथ बुखार और भूख का कम लगना ठीक हो जाता है। नागरमोथा, बेल की गिरी, लोध, इन्द्र-जौ, पठानी लोध्र, मोचरस और धाय के फूलों को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को 3 ग्राम लेकर गाय के दूध से बनी छाछ के साथ सुबह-शाम पीने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ मिलता है।

12. हलीमक: नागरमोथा की जड़ों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म के साथ मिलाकर फंकी लें, ऊपर से खैर (कत्थे) का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए। इससे हलीमक रोग ठीक हो जाता है।
13. अनियमित मासिक-धर्म: पिसे हुए नागरमोथा में गुड़ को मिलाकर गोलियां बनाकर खिलाने से स्त्रियों को आने वाला मासिक-धर्म ठीक हो जाता है।
14. सुजाक (गिनोरिया): सुजाक रोग के होने पर नागरमोथा का काढ़ा पीने से लाभ मिलता है।
15. उपदंश (गर्मी): नागरमोथा का काढ़ा पीने से आराम पहुंचता है।
16. प्रमेह (वीर्य विकार): नागरमोथा, दारूहल्दी, देवदारू, त्रिफला आदि को बराबर भाग में लेकर पीसकर काढ़ा बना लें, फिर सुबह-शाम इस काढे़ को पिलाने से प्रमेह में लाभ मिलता है।
17.वात रक्त (खूनी वात): हल्दी, आंवला और नागरमोथा का काढ़ा शहद के साथ सेवन करने से खूनी वात में लाभ पहुंचता है।
 18. रक्तपित्त (खूनी पित्त): सिंघाड़ा, धान का लावा, 
खजूर, कमल, केसर, और नागरमोथा आदि को बराबर भाग में लेकर पीस लें, फिर इसे 3 ग्राम लेकर शहद के साथ प्रतिदिन 3-4 बार प्रयोग करना लाभदायक होता हैं।
19. ज्वर (बुखार):

नागरमोथा और गिलोय का काढ़ा बनाकर पीने से बुखार कम होता जाता है। नागरमोथा और पित्तपापड़े का काढ़ा 20-40 ग्राम की मात्रा में पीने से शीत ज्वर कम होता है और भोजन को पचाने की शक्ति मिलती है। नागरमोथा 10 ग्राम, सौंठ 10 ग्राम और चिरायता 10 ग्राम को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ का सेवन करने से कफ, वात, आम और बुखार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं। नागरमोथा, पित्तपापड़ा, खस, श्वेत चंदन, सुगन्धवाला और सोंठ का काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन से बुखार की जलन और प्यास को शान्त होती है। नागरमोथा (मोथा) के फल का काढ़ा बनाकर शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से बुखार, दस्त और पित्त के बुखार में आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त मोथा में स्वेदजनक (पसीना लाने वाला), मूत्रजनक (पेशाब लाने वाला) और उत्तेजक होता है।

20. दर्द: नागरमोथा, मुलेठी, कैथ की पत्ती और लाल चंदन को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, इस बने हुए लेप को दर्द वाते अंग (भाग) पर लगाने से पीड़ा शान्त होती जाती है।
21. जोंक: नागरमोथा के फल को मुंह में रखने से कंठ (गले) में चिपकी जोंक तुरन्त बाहर निकल आती है।
22. घाव:

नागरमोथा की जड़ को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसे गाय के घी में मिलाकर घाव (जख्म) पर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। मोथा या नागर मोथा के ताजे फल को घिसकर गाय के घी में मिलाकर घाव पर लगाने से फायदा होता है।

23. स्वेदजनन (पसीना को लाना): नागरमोथा की जड़ और फल का काढ़ा बनाकर सेवन करने से पसीना और पेशाब खुलकर आता है और मुंह से लार का गिरना रुक जाता है।
24. कुष्ठ (कोढ़): पीपल, कालीमिर्च, हरड़, बहेड़ा, आमला, शुंठी, बायविडंग, नागरमोथा, चंदन, चित्रक, दारूहल्दी, सोनामक्खी, पीपलामूल और देवदारू को 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीसकर मिश्रण बना  लें, फिर मण्डूर को 400 मिलीग्राम गाय के दूध में अच्छी तरह पकायें, जब मण्डूर 50 ग्राम शेष रह जाये तो इसे मिश्रण में मिलाकर गूलर के फल के समान छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इन गोलियों के सेवन से डकारे आना बन्द हो जाती हैं। इसके साथ ही कुष्ठ, अजीर्ण (भूख का कम होना), शोथ (सूजन), कफ, बवासीर, पीलिया, मेद (मोटापा), प्लीहा (तिल्ली) आदि रोगों में इसकी गोलियों का सेवन करने से लाभ मिलता है।
25. मूत्रवर्द्धक: नागरमोथा के चूर्ण को मट्ठे के साथ सेवन करने से मूत्र में वृद्धि होती है।
26. अण्डकोष की खुजली: नागरमोथा को पीसकर अण्डकोषों पर लेप करने से अण्डकोषों की खुजली में लाभ होता है।
27. दमा, खांसी:

नागरमोथा, सोंठ और बड़ी हरड़ के चूर्ण में गुड़ मिलाकर खाने से दमा और खांसी नष्ट हो जाती है। सोंठ, हरड़ और नागरमोथा को पीसकर गुड़ में मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में गोलियां बनाकर रख लें। इन्हें चूसने से सभी प्रकार की खांसी और दमा नष्ट हो जाती है।

28. पुन: पौनिक ज्वर: नागरमोथा, पीपल, कुटकी, अमलतास का गूदा और छोटी हरड़ को एक साथ पीसकर काढ़ा बना लें। इसे काढे़ के सेवन से पुन: पौनिक बुखार से छुटकारा मिलता है।
29. वात-पित्त का ज्वर: नागरमोथा, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, महुए के बीज और फालसे की छाल को मिलाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ का बुखार को दूर हो जाता है।
30. शीतादि रोग (दांतों में ठण्डा लगना): नागरमोथा, फूलप्रियंगु तथा त्रिफला को पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इसका लेप प्रतिदिन दांतों पर करने से शीतादि रोग नष्ट होते हैं।
31. कनीनिका शोथ (आंखों की पुतली की सूजन और जलन): मोथा या नागर मोथा के कन्द (फल) को साफ करके घी में भूनकर पीस लें। इसे आंखों में लगाने से 3-4 दिनों में ही पूरा लाभ हो जाता है।
32. जीभ और त्वचा की सुन्नता (अचेतन) : नागरमोथा 3-6 ग्राम पीसकर दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से रोग में लाभ होता है।
33. योनि की जलन और खुजली: नागरमोथा के फल को पीसकर कपड़े से निचोड़कर रस एकत्र कर लें। इस रस को लगाने से योनि की खुजली और जलन में बहुत लाभ मिलता है।
34. हिचकी का रोग: 1 ग्राम नागरमोथे का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से हिचकी में आराम मिलता है।
35. मूत्र के साथ खून आना: नागरमोथा 3 से 6 ग्राम को दूध में पीस घोलकर, सुबह-शाम पीने से पेशाब साफ आने लगता है।
36. थूंक अधिक आना: नागरमोथा के फल का काढ़ा बनाकर 20-40 ग्राम प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से मुंह से थूक आना तथा मुंह के छाले अपने आप कम हो जाते हैं।
37. संग्रहणी (पेचिश): 

नागरमोथा, अतीस, बेलगिरी तथा इन्द्रजौ इन सभी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटने से संग्रहणी अतिसार का रोग दूर हो जाता है। नागरमोथा, बेलगिरी, इन्द्रयव, सुगंध तथा मोचरस इन सभी को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बकरी के दूध में डालकर पकाएं। इसके बाद इसमें से 1 चम्म्च लेकर प्रतिदिन सेवन करने से संग्रहणी अतिसार का रोग दूर हो जायेगा। नागरमोथा, अरलू, सोंठ, धाय के फूल, पठानी लोध्र, सुगन्धवाला, बेलगिरी, मोचरस, पाठा, इन्द्रयव, कुड़े की छाल, आम की गुठली, अतीस और लजालू को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद के साथ या चावलों के धोवन के साथ सेवन करने से संग्रहणी अतिसार में लाभ मिलता है। नागरमोथा, इन्द्रयव, बेलगिरी, पठानी लोध, मोचरस और धाय के फूल आदि सभी एक समान भाग में लेकर कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गुड़युक्त मट्ठा (लस्सी) के साथ सेवन करने से संग्रहणी अतिसार का रोग दूर हो जाता है। 3 से 6 ग्राम नागरमोथा को अदरक के रस के साथ पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से संग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।


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