भुंई आंवला

 भुंई आंवला

भुंई आंवला या भूमि आमलकी एरण्ड कुल का पादप हैं जो वर्षाकालीन ऋतु में खेत खलिहानांे में अनाज के पौधों के साथ खरपतवार के रूप में उगता हैं। इसका क्षुप 1 से 1.5 फिट की उंचाई तक बढता है। भूमि आंवला की उत्पति स्थल अमेरिका को माना जाता हैं।

 

                                             

भूमि आंवला का पौधा शाखाओं से युक्त सीधा और भूमि पर फैलने वाला होता हैं।  इसके पत्ते छोटे और कुछ कुछ अण्डाकार आकार के होते है। इमली के पत्तों की तरह कतारबद्ध पत्ते होते है। पत्ते जिस शाखा से जुड़े होते है, उसी शाखा पर पत्तों के उद्गम स्थल के पास छोटे और गोल आकार के फल कतारबद्ध लगे हुए रहते हैं। इनके फल बहुत कुछ आंवला के फल से मिलते जुलते होते है, बस आकार में बहुत छोटे होते हैं। आंवला के समान फल होने के कारण ही शायद इस घास का नाम भी भूमि आंवला पड़ा हैं।


विभिन्न भाषाओं में भूमि आंवला के नाम

हिन्दी  - भुंई आंवला, भूआमलकी, हजारदाना, जरमाला, जंगली आंवला

संस्कृत - भूम्यामलकी, भूधात्री, तामलकी, बहुफला

बंगाली - भुंई आमला

गुजराती - भोंय आंवली

मराठी - भुई आंवली

कन्नड़  -  किरनेलीगिन्डा,किरूनेल्ली, नीलानेल्ली

मलयालम - कीझारनेरी,किलानेल्ली, किलु कानेल्ली, किरगानेल्ली, किरूतानेल्ली

उड़िया  - भुई औला

तमिल  - कीझानेल्ली, कीझाक्कानेल्ली

तेलगु - नेलाउसिरीकी

वानस्पतिक नाम - फाईलेन्थस एमेरस अथवा फाईलेन्थस निरूरी ( Phylianthus Amarus Schumothon )

वानस्पतिक कुल - यूकार्बिएसी (Enphorbiaceae)



उपयोग 

भूमि आंवला का सम्पूर्ण पंचांग औषधीय उपयोग का होता हैं। लीवर से सम्बंधित बिमारियां विशेषकर पीलिया और हेपेटाइटस बी के लिए यह आयुर्वेद की एक रामबाण औषधि हैं। इसके पत्तों में पोटेशियम काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसके कारण इसकी प्रकृति मूत्रल होती हैं। लीवर की पीलिया जैसी बिमारी में भूमि आंवला के पंचांग का काढा बनाकर पिलाने से पीलिया को जल्दी नियंत्रित किया जा सकता हैं। 

भुईं आंमला बुखार, मधुमेह, घनोरिया, आंखों की बिमारी, खुजली तथा चर्मरोगों में भी काफी गुणकारी औषधि हैं। मूत्रल प्रकृति का होने के कारण भूमि आमलकी को पेशाब से सम्बंधित विकारों के उपचार हेतु भी किया जाता हैं। इसकी जड़ कब्ज को तोड़ने वाली होती हैं। 

सर्दी खांसी में इसके पत्ते तुलसी के पत्तों के साथ मिलाकर काढा बनाकर पिलाने से तुरंत आराम मिलता हैं।

मुंह के छालों के लिए इसके पत्ते अच्छी तरह चबाकर खाने से तुरन्त आराम मिलता हैं।



कुछ आयुर्वेदिक जड़ीबूटियाँ जो आपके आस पास मिल जाएगी इनकी पहचान के लिए लिंक नीचे दिए गए है,

इन्हें जरूर देखें - 

1. इंद्रायण (CITRULLUS COLOCYNTHIS)

2. गोखरू या गोक्षुर (TRIBULUS TERRESTRIS)

3. सरपुंखा - (TEPHROSIA PURPUREA)

4. धमासा (FAGONIA CRETICA)

5. ऊंट कंटारा (ECHINOPS ECHINATUS)

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